गुरुवार, 3 मार्च 2016

ईश्वर के पाठशाला में

मिथिलेश आदित्य
ईश्वर के पाठशाला में
श्यामपट हैआकाशसा
जहाँ युग—युगान्तर से
लिखा है
आदमी का इतिहास
कि क्योंधरती
इतना दुःख कष्ट सहकर
अपने छाती हृदय से
उभारना वा सम्हालना
चाहता हैआदमी को

लेकन
स्वार्थ के चक्रब्युह में
जो आदमी भुलता है
धरती का उद्देश्य
मर्यादा और पीड़ा

जिसका कई परिणाम
भोग रहा है आदमी
और गिर रहा है
नैतिकता के धरातल से
नीचे बहुत नीचे
ईश्वर के पाठशाला में
...

मंगलवार, 1 मार्च 2016

स्नेह स्पर्श

मिथिलेश आदित्य
भूकी पेट
रहता हूँ तरोताजा
अहम् शक्ति है
तुम्हारे स्नेह स्पर्श में

पाकर इससे मैं
होता हूँ
साहसी
धैर्यवान
बलवान

यही शक्ति से
लड़ता हूँ
जुझता हूँ
कड़ाई से
इस दुनियाँ के साथ
झंझावतों वा कठिनाई को
करता हूँ नाशसर्वनाश

और समेट लेता हूँ
मुट्ठी में दुनियाँ को

आपस में प्यार के लिए
धरा के लिए
तुम्हारे लिए

पाकर तुम्हारे स्नेह स्पर्श से
...

सोमवार, 29 फ़रवरी 2016

तुम्हारी जुल्फों की चिन्ता

मिथिलेश आदित्य
तुम्हारी जुल्फों के संग
जब उनको
लहराते
मड़राते
और इतराते
विषय में सुनता हूँ
जानता हूँ

तो सोचता हूँ

काश !
मेरे पास होता
ठोस प्रमाण
इनके विरुद्घ !!!

इन्हें थामने के लिए
रोकने के लिए
जो अन्ततः
उलझा देते हैंस्वार्थवश
जुल्फों को

काश !
तुम्हें यह मालुम होता
आज मैं
इतना निकम्मा हो गया हूँ
कि
तुम्हारी जुल्फों की
हिफाजत के लिए
कदम नहीं बढ़ा पा रहा हूँ
...

मेरे पास

मिथिलेश आदित्य 
मेरे पास अनाज है
पर इसकी भूख नहीं
मेरे पास दिल है
पर किसी से प्यार/स्नेह नहीं
मेरे पास धन है
पर उपयोग/उपभोग नहीं
मेरे पास विद्या है
पर अनुसरण/अमल नहीं
मेरे पास बल है
पर इसका कोई उपयोग/निष्कर्स नहीं
मेरे पास मित्र है
पर आपस में आत्मियता/हार्दिकता नहीं
मेरे पास किताब है
पर इसका कोई अध्ययन/अध्यापन नहीं
मेरे पास जुबान है
पर सच बोलने का साहस नहीं
मेरे पास दुनियाँ का सब कुछ है        
पर किसी को मालुम नहीं,
किसी को देने के लिए कुछ नहीं
पर कहने/कहलाने के लिए है
मेरे पास और भी है बहुत कुछ
पर आज याद नहीं
...

रविवार, 28 फ़रवरी 2016

तुम्हारी आँखों में

मिथिलेश आदित्य
तुम्हारी आँखों में
पाता हूँ
स्नेह की धारा
दर्द को—  
झेल लेने की कला
मंजिल पाने का
ठौरठिकाना
और
भागदौड़
जिन्दगी का परिणाम
उलझे सवालों का हल

इसीलिए प्रिये
निहारता हूँ अनवरत 
तुम्हारी आँखों को
ताकि
ढूँढ़ सकूँ
माप सकूँ
बेहतर जिन्दगी को
तुम्हारी आँखों में
...

कामना

मिथिलेश आदित्य
काँटों के घने जंगल
उगा लेना
चाहता हूँमैं
अपने चारों तरफ

ताकि

कभी ना सो सकूँ
गहरी नींद
इसके चुभन से
...

मेरा एक परिचित और मैं

मिथिलेश आदित्य
अंधेरे में
माचिस नहीं मिल रही थी
उसे दीप जलाना था

मेरे पास माचिस थी
मैंने उसका दीप जला दिया
दीप जलते ही
रौशन हुआ उसका घर

तत्तपश्चात्
उसे अपनी माचिस दिखाई दी
उसने अपनी माचिस पाई
और मेरे द्वारा
जलाए गए दीप को बुझा दिया
उसने अपनी माचिस से दीप जलाया

फिर उसने
विनम्रतापूर्वक
मुझसे मेरी माचिस मांगी
मैंने मित्रतावश
उसे अपनी माचिस दी
पर हँसते हुए उसने
उस जलते दीप में
मेरी माचिस जला दी
और मुझसे
हाथ मिलाते हुए कहा
मुझ पर भी
कोई कविता लिखो मित्र
तुम कवि लोग तो
एक कप चाय पर
कविता लिखते और सुनाते हो
और फिर
मुझे विदा करते हुए कहा
फिर मिलेंगे कभी
मिलतेजुलते रहना...
आतेजाते रहना...
फोनवोन करते रहना...
धन्यवाद...

आज मैं इस परिचित पर
कविता लिखने बैठा हूँ !!!
सोचता हूँ
कैसी कविता लिखूँ ?
उजाला की कविता लिखूँ ?
कि अंधेरा की कविता लिखूँ ?
समानता की कविता लिखूँ ?
कि स्वार्थ कविता लिखूँ ?
दंभ की कविता लिखूँ ?
कि शालिनता की कविता लिखूँ ?
...

पाक्षिक पर्व

मिथिलेश आदित्य
नेपाल के वाणी प्रकाशन में
मनाया जा रहा है
पाक्षिक पर्व
इसके दहलीज पर आतेजाते हैं
युग के मसीहा
और रचतेसुनाते हैं
जनजीवन की बातें

इसीलिए तो मैं
यहाँ की दहलीज पर
आतेजाते पाँव के धूलकण को
चन्दन बनते देखकर
लगाता हूँ माथे पर
गर्व के साथ
उमंग के साथ
नये संकल्प सोच के साथ
यह समझकर कि वे
उपदेशक की तरह
रखते हैं हमें
हर घड़ी सचेत
दिखाकर जीने की सही राह
रखते है हमें आलोकित
तथा
शब्दों के पुष्ट भोजन परोसकर
भरते हैं हममें नित नयी ऊर्जा

पाक्षिक पर्व के अवसर पर
...

शनिवार, 27 फ़रवरी 2016

मैं लिखूँगा कविता

मिथिलेश आदित्य
मैं लिखूँगा कविता
तब, जब सावन की वारिश होगी
और होगा प्रेमिका के आने का संकेत
जब प्रेमिका मेरी बाहों में होगी
और प्यार भरी बातें होगी
इसी बीच
भूलीभटकी बातों को
याद करते हुए
मैं लिखूँगा कविता 
मुझे यकीन है
मेरी कविता में
जन्म लेगासमुन्द्र
जन्म लेगातूफान
जन्म लेगापहाड़
जन्म लेगासंघर्ष
जन्म लेगा और भी बहुत कुछ
जिससे सिखेगा आदमी
आदमी होने के लिए
बेहतर जीने के लिए
अपनी जिन्दगी,
औरों की जिन्दगी जीने के लिए
संवारने के लिए
एकदूसरे से
प्यारस्नेह के लिए
मैं लिखूँगा  कविता
...