गुरुवार, 25 फ़रवरी 2016

मोची लोग और मैं

मिथिलेश आदित्य
मेरे पास जब
नहीं थे जुते—चप्पल
तब मोची लोग
पांव क्या
मेरे मुँह को भी
देखना नहीं चाहते थे —

यह अलग बात है
कि उतने दिनों
मैं नंगे पांव धरती पर घूमा
प्रकृति को निकट से जाना—पहचाना
जिससे मेरी नजरें तेज हुई
दुनियाँ में चलने के काबिल हुआ —

और पढ़ने लगा
जिन्दगी का शब्दकोश —
रिश्तों का व्याकरण —
दुनियाँ भर की बातें —

लेकिन आज
मोची लोग बहुत खुश है
मेरे जुते—चप्पलों को देखकर
सोचते हैं —
जुते—चप्पल का काम लेकर
आयेगा हमारे पास
रोजी रोटी बढ़ायेगा
इसीलिए आज ये —
पहचानने लगे हैं
समझने लगे हैं — मुझे
पर अब मैं
अपने जुते—चप्पल खुद ठीक करुँगा
बीते दिनों को याद करते—करते
...