सोमवार, 29 फ़रवरी 2016

तुम्हारी जुल्फों की चिन्ता

मिथिलेश आदित्य
तुम्हारी जुल्फों के संग
जब उनको
लहराते
मड़राते
और इतराते
विषय में सुनता हूँ
जानता हूँ

तो सोचता हूँ

काश !
मेरे पास होता
ठोस प्रमाण
इनके विरुद्घ !!!

इन्हें थामने के लिए
रोकने के लिए
जो अन्ततः
उलझा देते हैंस्वार्थवश
जुल्फों को

काश !
तुम्हें यह मालुम होता
आज मैं
इतना निकम्मा हो गया हूँ
कि
तुम्हारी जुल्फों की
हिफाजत के लिए
कदम नहीं बढ़ा पा रहा हूँ
...

मेरे पास

मिथिलेश आदित्य 
मेरे पास अनाज है
पर इसकी भूख नहीं
मेरे पास दिल है
पर किसी से प्यार/स्नेह नहीं
मेरे पास धन है
पर उपयोग/उपभोग नहीं
मेरे पास विद्या है
पर अनुसरण/अमल नहीं
मेरे पास बल है
पर इसका कोई उपयोग/निष्कर्स नहीं
मेरे पास मित्र है
पर आपस में आत्मियता/हार्दिकता नहीं
मेरे पास किताब है
पर इसका कोई अध्ययन/अध्यापन नहीं
मेरे पास जुबान है
पर सच बोलने का साहस नहीं
मेरे पास दुनियाँ का सब कुछ है        
पर किसी को मालुम नहीं,
किसी को देने के लिए कुछ नहीं
पर कहने/कहलाने के लिए है
मेरे पास और भी है बहुत कुछ
पर आज याद नहीं
...