मिथिलेश आदित्य
नेपाल के वाणी प्रकाशन में
मनाया जा रहा है—
पाक्षिक पर्व
इसके दहलीज पर आते—जाते
हैं
युग के मसीहा
और रचते—सुनाते हैं
जन—जीवन
की बातें
इसीलिए तो मैं
यहाँ की दहलीज पर
आते—जाते
पाँव के धूल—कण
को
चन्दन बनते देखकर
लगाता हूँ माथे पर
गर्व के साथ
उमंग के साथ
नये संकल्प व सोच के साथ
यह समझकर कि वे
उपदेशक की तरह
रखते हैं हमें
हर घड़ी सचेत
दिखाकर जीने की सही राह
रखते है हमें आलोकित
तथा
शब्दों के पुष्ट भोजन परोसकर
भरते हैं हममें नित नयी ऊर्जा
पाक्षिक पर्व के अवसर पर
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