रविवार, 28 फ़रवरी 2016

पाक्षिक पर्व

मिथिलेश आदित्य
नेपाल के वाणी प्रकाशन में
मनाया जा रहा है
पाक्षिक पर्व
इसके दहलीज पर आतेजाते हैं
युग के मसीहा
और रचतेसुनाते हैं
जनजीवन की बातें

इसीलिए तो मैं
यहाँ की दहलीज पर
आतेजाते पाँव के धूलकण को
चन्दन बनते देखकर
लगाता हूँ माथे पर
गर्व के साथ
उमंग के साथ
नये संकल्प सोच के साथ
यह समझकर कि वे
उपदेशक की तरह
रखते हैं हमें
हर घड़ी सचेत
दिखाकर जीने की सही राह
रखते है हमें आलोकित
तथा
शब्दों के पुष्ट भोजन परोसकर
भरते हैं हममें नित नयी ऊर्जा

पाक्षिक पर्व के अवसर पर
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