मिथिलेश आदित्य
तुम्हारी आँखों में
पाता हूँ —
स्नेह की धारा
दर्द को—
झेल लेने की कला
मंजिल पाने का
ठौर—ठिकाना
और—
भाग—दौड़
जिन्दगी का परिणाम
उलझे सवालों का हल
इसीलिए प्रिये—
निहारता हूँ अनवरत
तुम्हारी आँखों को
ताकि—
ढूँढ़ सकूँ
माप सकूँ
बेहतर जिन्दगी को
तुम्हारी आँखों में
...
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