मिथिलेश आदित्य
भूकी पेट
रहता हूँ तरोताजा
अहम् शक्ति है
तुम्हारे स्नेह स्पर्श में
पाकर इससे मैं—
होता हूँ—
साहसी—
धैर्यवान—
बलवान—
यही शक्ति से
लड़ता हूँ
जुझता हूँ
कड़ाई से
इस दुनियाँ के साथ
झंझावतों वा कठिनाई को
करता हूँ नाश—सर्वनाश
और समेट लेता हूँ
मुट्ठी में दुनियाँ को—
आपस में प्यार के लिए
धरा के लिए
तुम्हारे लिए
पाकर तुम्हारे स्नेह स्पर्श से
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