मिथिलेश
आदित्य
तुम्हारी
जुल्फों के संग
जब उनको
लहराते
मड़राते
और इतराते
विषय में सुनता
हूँ—
जानता हूँ—
तो सोचता हूँ
काश !
मेरे पास होता
ठोस प्रमाण
इनके विरुद्घ !!!
इन्हें थामने के लिए
रोकने के लिए
जो अन्ततः
उलझा देते हैं—
स्वार्थवश
जुल्फों
को—
काश !
तुम्हें
यह मालुम होता
आज मैं—
इतना निकम्मा हो गया
हूँ
कि
तुम्हारी
जुल्फों की
हिफाजत के लिए—
कदम नहीं बढ़ा
पा रहा हूँ—
...
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