सोमवार, 29 फ़रवरी 2016

तुम्हारी जुल्फों की चिन्ता

मिथिलेश आदित्य
तुम्हारी जुल्फों के संग
जब उनको
लहराते
मड़राते
और इतराते
विषय में सुनता हूँ
जानता हूँ

तो सोचता हूँ

काश !
मेरे पास होता
ठोस प्रमाण
इनके विरुद्घ !!!

इन्हें थामने के लिए
रोकने के लिए
जो अन्ततः
उलझा देते हैंस्वार्थवश
जुल्फों को

काश !
तुम्हें यह मालुम होता
आज मैं
इतना निकम्मा हो गया हूँ
कि
तुम्हारी जुल्फों की
हिफाजत के लिए
कदम नहीं बढ़ा पा रहा हूँ
...

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