रविवार, 17 जून 2012

आजकल एक आदमी

मिथिलेश आदित्य
आजकल एक आदमी
हो रहा है –
ठग, बेईमानी और लालच
अर्थात् बुराईयों की जड़
जम गई है इनके अन्दर

यह एक – दूसरे के बीच
अपनी गलती छुपाने के लिए
दे रहे हैं –धार्मिक उपदेश
समाज में जीने के लिए
दिखा रहे हैं –धार्मिक रास्ते
धर्म को बढ़ाने के लिए
उत्साहित कर रहे हैं –
प्रोत्साहित कर रहे हैं –

अच्छी बातों के माध्यम से
आपस में घनिष्ठ हो रहे हैं

आज यह आदमी
स्वच्छ प्रकृति का आदमी में
रुपान्तरित हो रहे हैं –

पर यही आदमी
मौका पाने पर
एक –  दूसरे की करते हैं बुराई
पूरी करते हैं अपना स्वार्थ
और समाज को करते हैं कमजोर
धर्म के सहारे –
उपदेश के सहारे –

अन्ततः फिर दिखाते हैं
अपना क्षुद्र स्वभाव
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