मंगलवार, 23 फ़रवरी 2016

एक युवती और मैं

मिथिलेश आदित्य
बहुत दिनों से
एक युवती रख रही है
अपने पास एक रंगीन डायरी
इस डायरी के सादा पृष्ठ में
कभी—कभी लिखती है वह
जीवन की तन्हाई
और अनुभव करती है शून्यता

मैं सोचता हूँ आखिर और
क्या छुपा रखी है — वह
इस डायरी के पृष्ठ में
शायद सुनहरा भविष्य
या अपनी प्रेम कथा या और कुछ

वह लिखना नहीं चाहती
इस डायरी में वह बात
जिससे हो जाए अनर्थ
बेपर्दा हो जाए पुरुष —समाज
मिट जाए देश का भविष्य
या यह खुद ही हो जाए निर्वस्त्र

मैं सोचता हूँ
युवती सब दिन
इसी तरह लिखे डायरी
जहाँ हो कविता, गीत या गजल
या जीवन के लिए मार्ग दर्शन
शान्ति और अमन चैन की बात
मैं यही सोच सकता हूँ
युवती के बारे में
भले हमें वह पहचाने या न पहचाने

पर मैं सोचता हूँ
इसी तरह —

एक युवती है
उसके पास एक डायरी है
जहाँ कभी — कभी लिखती है
जीवन की तन्हाई
और अनुभुव करती है शुन्यता
...

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