मिथिलेश आदित्य
...
आज
अंकुर की सोच
बिल्कुल इन्द्रधनुषी है
जिसमें भींगकर
ढूढ़ना चाहता है – वह
अपना सुनहरा भविष्य
सुरक्षा और संरक्षण के लिए–
पर
हम और आप
यह देख
होना चाहते हैं
उस पर काबिज
यह समझकर
कि हो ना जाय
उसका कद
हमारे कद से ऊपर
पर अंकुर
पहचान रहा हमारा षड़यन्त्र
तभी तो
और पुख्ता हो रहा
अंकुर की सोच
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