मिथिलेश आदित्य
मच्छर की कमजोर समाज
ऊपज और परवरिश को देखकर
आदमी हमेशा से
इसकी करता आ रहा है हत्या
साथ ही आरोपित के लहजे में
कहता है
कि —
मच्छर खून पीकर
फैलाता है — मलेरिया, फलेरिया, डेंगू
और कई तरह की बिमारीयाँ
और कहता है
कि — यह
न चैन से सोने देता है
और
न चैन से जगने देता है
कानों के पास आकर
बेवजह भिनभिनाता है
आदमी इनसे है दुःखी
मच्छर की ऐसी समाचार जानकर
आज से मैं —
मच्छर पर शोध करने लगा हूँ —
मच्छर के प्रति संवेदनशील हो गया हूँ —
मच्छर का चिंतन — स्वभाव —
कर्म — स्वभाव को पहचान रहा हूँ
कि मच्छर
खून नहीं पीता, खून जाँचता है
कि —
आदमी के रगो में
राष्ट्र प्रेम, समाज
और आदमी के प्रति
खून दोड़ता है या नहीं —
सेवा भाव है या नहीं —
अर्थात्
मच्छर, आदमी के सारे कार्य परीक्षण कर
आदमी की मानसिकता समझ कर
कानों के पास आकर
राष्ट्र भक्ति गीत गुनगुनाता है
मन — मस्तिष्क को जागरुक करना चाहता है
ईमानदारी के साथ होने के लिए
राष्ट्र प्रेम, समाज
और आदमी के प्रति
प्यार बढ़ाना चाहता है
और स्वास्थ्य के प्रति करता है सचेत
पर अफशोस
मच्छर की छोटी — सी दुनियाँ
और इसका छोटा — सा कद को देखकर
इस पर
किसी की अच्छी निगाह नहीं है
इसकी कोई इज्जत नहीं है
इसके गुणी स्वभाव को
पहचानना नहीं चाहता है
सीखना नहीं चाहता है